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खतरे की घंटी है, सावधान!

मुंबई में पिछले दो दिनों से जो कुछ हो रहा है, चलाया जा रहा है एक खतरे की घंटी है। याद कैन लोक सभा चुनाव सर पर है और सारी राजनितिक पार्टियां पूरी तैयारी मनी है कि किस प्रकार दिल्ली का किला फतह हो। याद करे कारगिल कि घटना को जब राष्ट्रवाद का उबाल आया था या लाया गया था, वही सब कुछ बनने की khichadi दिल्ली के किचन दरबार में पक रही है
अंत केवल वअहि है कि कैसे ज़्यादा से ज़्यादा सीटों पर हमारा कब्ज़ा हो और बहुमत का जादुई आंकडा प्राप्त कर ले। सो रेस जारी है और हम आप सभी तैयार है। सूचना किसे है यह ना कोई बताने वाला है ना कोई सोचने वाला।
क्या कोई सांस्कृतिक इच्छाशक्ति भी नही है जो रचनात makta se is waqut hastakshap kare।

सवाल यह है कि इप्टा जैसे संगठन कहाँ है जो जन संस्कृति कि प्रmpara कोduhai detain hai.

टिप्पणियाँ

" शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"

समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर

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