राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित अनुसूचित जातियों में सबसे कमजोर की पहचान की जाय.
उनकी सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन कर उनके पिछडेपन के कारणों का पता लगाया जाय और उस पिछडेपन को दूर करने के लिए आवश्यक अनुशंसाएँ की जाय। और
वैसे महादलितों के सामाजिक और शैक्षणिक स्तर को उँचा उठाने और उनको रोजगार उपलब्ध कराने के लिए.
विचारणीय पहलू है कि उपर्युक्त तथ्यों की जानकारी के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अस्तित्व में है।राज्यों में भी राज्य अनुसूचित जाति आयोग गठन करने की व्यवस्था दी गई है। बिहार में दशकों से राज्य अनुसूचित जाति आयोग का गठन नहीं किया गया और इसका एक मात्र कारण है कि बिहार की पूर्व और वर्तमान सरकारों की यह सोच रही कि यदि राज्य अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया जाता है तो उसमें काँग्रेस पार्टी अथवा केन्द्र में काबिज सरकार के लोगों को स्थान देना होगा.अतः अनुसूचित जाति आयोग नहीं गठित किया गया. वर्तमान जद(यू) और भाजपा सरकार द्वारा राज्य महादलित आयोग के गठन के पीछे वास्तविक उद्देश्य निम्नलिखित है:
- अनुसूचित जातियों(महादलितों) को बोध कराना कि राजद की सरकार ने 15वर्षो में उनके लिए जो काम नहीं की, वह काम वर्तमान सरकार द्वारा किया जा रहा है।
- अनुसूचित जातियों में जनसंख्या के आधार पर बडी जाति चमार और दुसाध जिनकी प्रतिबद्धता क्रमशः बहुजन समाज पर्टी और लोक जन शक्ति पार्टी के प्रति है,उनको विकास की मुख्य धारा से अलग करना।
- अनुसूचित जाति की 21 जातियाँ(महादलितों) जो राजनीतिक प्रतिबद्ध नहीं हैं उनके वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करना।
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि राज्य महादलित आयोग एक जाँच आयोग है,इस बात की पुष्टि श्री नीतिश कुमार द्वारा अनेक मंचों पर की गई है।यहाँ सोचने की बात है कि यदि यह जाँच आयोग है तो क्या इसके सदस्यों और अध्यक्ष की योग्यता निर्धारित की गई है? क्या किसी जाँच आयोग के सभी सदस्य राजनीतिक कार्यकर्ता हो सकते हैं?क्या किसी जाँच आयोग का प्रतिवेदन प्रस्तुति के पहले यह निष्कर्श दिया जा सकता है कि कौन दलित हैं और कौन महादलित? बहरहाल माननीय उच्च न्यायालय का मानना है कि राज्य सरकार द्वारा जाँच आयोग का गठन किया गया है और यह उसका विशेषाधिकार है।भारत के संविधान या किसी अन्य कानून में ऐसा उदाहरण नहीं है कि राज्य सरकार जाँच आयोग नहीं गठित कर सकती।शायद ही कोई ऐसा नागरिक होगा जो राज्य सरकार की उक्त शक्तियों की व्याख्या करने हेतु न्यायालय की शरण में जायेगा।वास्तविकता तो यह है कि याचिकाकर्ता ने अनुसूचित जाति की सूचि में उपविभाजन या सूक्ष्म विभाजन को रोकने तथा अधिसूचित सूचि में किसी प्रकार के छेड-छाड को रोकने के उद्देश्य से माननीय उच्च न्यायालय की शरण में गया था.न्यायालय द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि अनुसूचित जाति की अधिसूचित सूचि में किसी भी प्रकार का छेड-छाड नहीं किया जायेगा और उपविभाजन या सूक्ष्म विभाजन नहीं होगा.यदि महादलित आयोग की अनुशंसा के आधार पर राष्ट्रपति के अध्यादेश के साथ छेड-छाड होता है या उपविभाजन या सूक्ष्मविभाजन होता है तो कोई भी न्यायालय की शरण में जा सकता है.
उपर्युअक्त तथ्यों का सूक्ष्म विश्लेषण करने की आवश्यकता है. सन् 2001 की जनगणना के मुताविक बिहार की कुल जनसंख्या 82998509 में से कुल 13048608 अनुसूचित जातियों की जनसंख्या हैं जो कुल जनसंख्या का 15.7 प्रतिशत हैं.अनुसूचित जातियों में कुल 23 जातियों को शामिल किया गया हैं.इन 23 जातियों में चमारों की जनसंख्या 4090070 हैं, जो अनुसूचित जातियों की कुल संख्या का 31.3 प्रतिशत है,दुसाधों की संख्या 4029411 है जो 30.9 प्रतिशत होता है.यानि 21 जातियों की कुल आबादी मात्र 37.8 प्रतिशत है.वर्तमान सरकार द्वारा 21 जातियों को महादलित के रुप में चिन्हित किया गया है.सरकार का तर्क है कि ए जातियां विकास के मामले में पिछड गयीं हैं.सरकार इनका उत्थान करना चाह्ती है.यह एक स्वागतयोग्य कदम है.आजादी के 62 वर्ष बीत जाने के बाद भी बिहार में आरक्षित जगहों का मात्र 7% भरा जा सका है.सरकार की मंशा यदि स्पष्ट है तो सभी बैकलाग सीटों को अनुसूचित जाति की 21 जातियों से भर दी जाए,इसका सभी के द्वारा स्वागत किया जायेगा और इसमें मदद करने के लिए चमार और दुसाध नेता भी तैयार हैं। सरकार द्वारा इस दिशा मैं कोई पहल नहीं की जा रही है.अलबत्ता सरकार ने मुसहरों के कल्याणार्थ चुहों के बाज़ारीकरण हेतु परियोजना प्रस्ताव अवश्य तैयार की है और जब इसका विरोध मुसहर नेताओं द्वारा की गई तो सरकार एक सिरा से कह दी कि इस प्रकार की कोई योजना सरकार ने नहीं बनाई है.यह सरकार को बदनाम करने की एक साजिश है.बिहार का राज्य महादलित आयोग जिसके सभी सदस्य और अध्यक्ष राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, उनके जाँच का प्रतिवेदन ज्यादा महत्वपूर्ण है या भारत के जनगणना महानिबन्धक का प्रतिवेदन,कौन ज्यादा विश्वसनीय है, जनगणना महानिबन्धक का प्रतिवेदन 2001 के निम्नलिखित आंकडों पर जरा गौर करें:
साक्षरता का प्रतिशत:
धोबी 43.9
पासी 40.6
दुसाध 33.0
चमार 32.0
भुईया 13.3
मुसहर 9.0
शिक्षा का प्रतिशत:
बिना शिक्षा साक्षर 15.3
प्राथमिक से नीचे 44.1
प्राथमिक 26.5
मध्य 7.4
10, 10+ 26
तकनीकी -----
स्नातक/स्नातकोतर 0.6
चमार
बिना शिक्षा साक्षर 5.9
प्राथमिक से नीचे33.6
प्राथमिक28.5
मध्य 13.4
10, 10+15
तकनीकी 0.1
स्नातक/स्नातकोतर 3.5
धोबी
शिक्षा बिना साक्षर 4.5
प्राथमिक से नीचे 28.3
प्राथमिक २७
मध्य 14.9
10, 10+२ 19.7
तकनीकी 0.2
स्नातक/स्नातकोतर 5.4
दुसाध
शिक्षा बिना साक्षर ६.32
प्राथमिक से नीचे 28.5
प्राथमिक 13.7
मध्य 16.1
10, 10+२
तकनीकी 0.1
स्नातक/स्नातकोतर 3.5
मुसहर
शिक्षा बिना साक्षर १५.3
प्राथमिक से नीचे 44
प्राथमिक 27.8
मध्य 6.7
10, 10+२ 5.5
तकनीकी ---
स्नातक/स्नातकोतर 0.8
पासी
शिक्षा बिना साक्षर 5.7
प्राथमिक से नीचे 30
प्राथमिक 27.1
मध्य 13.4
10, 10+२ 17.9
तकनीकी 0.2
स्नातक/स्नातकोतर 5.6
विद्यालय जाने का प्रतिशत:
धोबी 45.6
पासी 39.4
दुसाध 34.1
चमार 33.7
भुईया 15.1
मुसहर 9.8
आर्थिक वर्ग में प्रमुख जातियों का प्रतिशत:
कृषक कृषि मजदुर घरेलू उद्योग अन्य
चमार 7.९ 80.२ 2.१ 9.8 १२.२ 4.0
दुसाध 10.३ 75.९ 1.६
मुसहर 2.७ 92.५ 0.8
पासी 12.३ 46.५ 12.2 29.0
धोबी 14.८ 48.१ 9.6 27.5
भुइया 6.६ 86.८ 1.2 5.6
स्रोत: जनगणना रिपोर्ट 2001.
महादलितों में शामिल कुछ जातियाँ जिनकी आबादी कम है वे शहरों में रहती हैं और आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ उनको मिला है.महिला-पुरूष दोंनों ही नौकरी करते हैं.अतः कहा जा सकता है कि विकास के मामले में जो ज्यादा आगे है वे महादलित की श्रेणी में शामिल हैं..भारतीय गणतंत्र के संविधान में पिछडापन का आधार सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछडापन को माना गया है.क्या चमारों एवं दुसाधों की सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछडापन समाप्त हो गया है? यदि आर्थिक पिछडापन जो कि संवैधानिक नहीं है,को पिछडापन का आधार बिहार सरकार मानती है तो महादलित की सूची में सम्मिलित जातियों की स्थिति भारत सरकार के सन् 2001 की जनगणना प्रतिवेदन से भिन्न क्यों है? इन प्रश्नों का जवाब सरकार के पास नहीं है.मुझे रामायण की वह पंक्ति याद है जिसमें कहा गया है कि समर्थवान का कोई दोष नहीं होता है.सरकार समर्थों की होती है.उनकी नज़र में जो सही प्रतीत हो वही सही होता है. जब श्री लालू प्रसाद की सरकार थी तब पंचायत का चुनाव हुआ.मुखिया,सरपंच,प्रमुख, ज़िला परिषद अध्यक्ष सब एकल था लिहाज़ा आरक्षण नहीं मिला.जब श्री नीतिश कुमार जी की सरकार बनी वे सभी सीटें एकल नहीं रहीं और उनमें आरक्षण लागू हो गया.यानि जो समर्थ हैं वही सही है.
राधे श्याम राम
एम.ए.(द्वय) शोध छात्र
सामाजिक चिंतक
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