मुठ्ठियाँ तनी हैं, हाथ भी उठे हैं
नज़रें हैं सीधी, होंठ खुल रहे हैं
बोलो बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद
बोलो खेत किसके हो?
जोते, बोये उसकी हो।
फसल पर हक़ किसका हो?
ख़ून, पसीना जिसका हो।
बोलो बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद।
सौ में नब्बे भूखें है,
दो रोटी पर जीते हैं।
सर पर इनके छत नहीं,
मरते मरते जीते हैं।
बाक़ी दस को मस्ती है,
ज़िन्दगी बोतल बस्ती है
लाश पर ये सब चलते हैं
नब्बे का ख़ून पी जीते हैं।
सब मिलकर इन पर हल्ला बोल
इंक़लाब ज़िन्दा बोल।
बोलो बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद।
मेहनत करते हम सब मिलकर
खेतों में, खलिहानों में
पर कीमत तय यह आका करता
मंडी में, दुकानों में।
मिलकर इस पर धावा बोलें,
कुचक्र आका का तोडें,
खेत अपने, फसल अपनी,
कीमत तय हम करेंगे,
उपजाने और खाने वाले सब मिलकर इसको तय करेंगे।
एक सुर में ऊँचा बोल
बाज़ार नहीं मुनाफाखोर।
बोल बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद।
किसान हम मेहनतकश हैं, भीख नहीं अधिकार चाहिए।
हम उत्पादक भाग्य विधाता,
नहीं किसान कल्याण चाहिए।
अधिकार, विकास पर दावा बोल
शोषक सत्ता डावांडोल।
बोलो बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद।
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