बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव के पहले महिलाओं से किया वादा निभाया। पहली अप्रैल से बिहार में शराबबंदी लागू कर दी। अब बिहार में देशी हो या विदेशी, मसालेदार या वोदका सब बंद। बार पर तालें लटके हैं और लाखों के चेहरे भी। आँखें ढूँढती फिर रही है, अंगूर के रास को।
काफी साहस के साथ लिया गया निर्णय, परंतु के संशय- "कितने समय के लिए होगा यह सब?", कहीं पंचायत चुनाव में शौचालय की अनिवार्यता की तरह यह भी वापस ना हो जाए? लेकिन छूटते ही दूसरी आवाज़ "नीतीश का निश्चय, विकास की गारंटी"। इसलिए पूरा भरोसा, शराब बंदी जारी रहेगी।
"पर विकास का पैसा कहाँ से आएगा?", "हर घर में नल का जल, शौचालय, क्रेडिट कार्ड, नाली गली, ....., कैसे पूरे होंगे।" "जब शराब ही नहीं तो यहाँ पैसा कौन लगाएगा?", "पूरी हिटलरशाही है, एक सरकार तय कर रही है कि क्या खाएं (मांस, या अन्य???) और दूसरी बिहार वाली पीना तय कर रही है।"
सैकड़ों सवाल घर बाहर, सड़क गलियों, नुक्कड़ ऑफिस गूँज रहे हैं और पटना का 7 सर्कुलर रोड/1 अन्ने मार्ग धीर-वीर-गंभीर की तरह अपने एजेंडा में तल्लीन है। परंतु यक्ष प्रश्न तो है ही। कैसे चलेगा सरकार का काम? पैसा कहाँ से आएगा? 'विकास' की गाड़ी चलेगी या नहीं?
लेकिन किसका 'विकास'? क्या गाँव में रहने वाले हरिहर मांझी का विकास? या पटना की सड़कों पर लहरिया कट चिंगारी बाइकर्स का विकास। शराब बंद हुई तो अपना हरिहर कहता है "ठीक कैलथिन सरकार। शराब बंद कर देलथिन। अब ना पियब ना बौराम। ...... पाँच-दस मिनट में दिमाग हवा। सब भेद मिटा जा हलय। मेहरारू और बेटी सब नसा जा हलय। अब सराब के पैसा खेत में, देह में। पोता इस्कूल में ........और पुतोहिया के इज़्ज़त.......।"
"चौपट को गया बिहार। यह कोई रहने की जगह है। कुछ नहीं हो सकता इस स्टेट का। .........💐बिना किसी सोच के शराब बंद। कुछ ख्याल भी है कि इम्पैक्ट पडेगा ....... इकॉनमी पर। ऐसे सीएम को तो ........। फ्रस्टेशन हो गया यहाँ से। कम से कम आगे पीछे हम युथ का तो सोच लेते।.... गाँव में बंदी ओके बट शहर में टोटल क्राइम। युथ के फ्यूचर के साथ। .....कांस्टिटूशनल राइट्स को ख़त्म कर रही यह सरकार। अरे डेवलपमेंट करो ना शराब क्यों बंद कर रहे हो। .... देखियेगा दो months में हवा निकल जायेगा।" बाइकर्स गैंग का चन्दन आग बबूला है। अगर उसके सामने कोई आ जाए तो मुँह उतार दे।
पर सवाल तो जायज ही है- पैसा कहाँ से आएगा? हज़ारों करोड़ की आमद के झटके में खत्म। दिल्ली से भी कोई उम्मीद नहीं कि कोई सहयोग मिलेगा। क्या हम बिहार के लोग अपने अलावा अपने पड़ोसी, अपने घर-गाँव, शहर सड़क बिजली के लिए सोचेंगे? अपने अलावा जमात के लिए कुछ करेंगे। जैसे अपने घर के मोटर से पड़ोसी के घर नल का जल। अपने मकान बनाने के लिए लाये गए थोड़े से बालू और सीमेंट से घर के बाहर की नाली-गली। अपने बच्चे के साथ पडोसी के भी बच्चे को थोड़ा ज्ञान और प्रोत्साहन, थोड़ी काउंसलिंग। अपने इंटरनेट का एक्सेस अपने दोस्तों को भी....।
आइये, बदलने की कोशिश करें अपने बिहार को। सबके विकास और स्वास्थ के लिए।
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