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इप्टा को जानें

भारतीय जन नाट्य संघ(इप्टा) का चौदहवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन इंदौर (मध्य प्रदेश) में होने जा रहा है. आइये जानते हैं इप्टा के बारे में कुछ रोचक जानकारी..... कुछ बस्तियां यहां थीं बताओ किधर गयीं. क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं. 1943. बंगाल का अकाल. अनाज की कमी नहीं लेकिन लोगों को मिला नहीं. तीस लाख लोग भूख से मारे गए लेकिन अंग्रेज़ सरकार के कान पर जूं तक ना रेंगी. जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से मदद मांगी गई कि बंगाल में लोग भूखे मर रहे हैं तो उन्होंने जबाब भेजा-अच्छा, तो गांधी अब तक क्यों नहीं मरे! उधर दूसरा विश्वयुद्ध दुनिया की राजनीतिक समीकरण बदलने को उतारू था. रूस की क्रांति ने भारत में भी बदलाव की ललक पैदा की. ऐसे में कम्युनिस्ट पार्टी ने एक ऐसी संस्था की परिकल्पना की जो देश भर में ना सिर्फ़ आज़ादी की अलख जगाए बल्कि सामाजिक बुराइयों अशिक्षा और अंधविश्वास से भी लोहा ले. मनोबल टूटा था लेकिन जीजिविषा बाकी थी.सही अर्थों में सर्वहारा समाज के उत्थान के लिए इप्टा का निर्माण हुआ. 25 मई 1943 को मुंबई के मारवाड़ी हाल में प्रो. हीरेन मुखर्जी ने इप्टा की स्थापना के अवसर की

इंकलाब

मुठ्ठियाँ तनी हैं, हाथ भी उठे हैं नज़रें हैं सीधी, होंठ खुल रहे हैं बोलो बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद बोलो खेत किसके हो? जोते, बोये उसकी हो। फसल पर हक़ किसका हो? ख़ून, पसीना जिसका हो। बोलो बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद। सौ में नब्बे भूखें है, दो रोटी पर जीते हैं। सर पर इनके छत नहीं, मरते मरते जीते हैं। बाक़ी दस को मस्ती है, ज़िन्दगी बोतल बस्ती है लाश पर ये सब चलते हैं नब्बे का ख़ून पी जीते हैं। सब मिलकर इन पर हल्ला बोल इंक़लाब ज़िन्दा बोल। बोलो बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद। मेहनत करते हम सब मिलकर खेतों में, खलिहानों में पर कीमत तय यह आका करता मंडी में, दुकानों में। मिलकर इस पर धावा बोलें, कुचक्र आका का तोडें, खेत अपने, फसल अपनी, कीमत तय हम करेंगे, उपजाने और खाने वाले सब मिलकर इसको तय करेंगे। एक सुर में ऊँचा बोल बाज़ार नहीं मुनाफाखोर। बोल बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद। किसान हम मेहनतकश हैं, भीख नहीं अधिकार चाहिए। हम उत्पादक भाग्य विधाता, नहीं किसान कल्याण चाहिए। अधिकार, विकास पर दावा बोल शोषक सत्ता डावांडोल। बोलो बोलो इंक़लाब, इंक़लाब ज़िंदाबाद।