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इप्टा के सम्मलेन के बहाने

इप्टा के सांगठनिक दौर के बारे में सोचते हुए आज फिर से ब्लॉग लिख रहा हूँ जो अरसा पहले छूट गया था । अपने एक अजीज़ मित्र की बात करूँ तो एक बुरी आदत छुट गई थी; पर कहीं ना कहीं अपनी बात को बताने और उस पर प्रतिक्रिया प्राप्त करने की चाहत ने एक बार फिर से उँगलियों को कैफियत की तरफ मोड़ा । तो आज मैं कुछ कहना नहीं कुछ जानना और समझना चाह रहा हूँ; क्यूँकी जब मैंने होश संभाला तो अडवानी जी शिला पूजन और रथ यात्रा निकाल रहे थीं। स्कूल गया तो अयोध्या में बाबरी माजिद ढा दी गयी थी। और अब जब कुछ करना कुछ प्रतिक्रिया देना चाहता था तो गाँधी जी के देश गुजरात का एक 'बर्बर', 'आमानुष मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हज़ारों का इसलिए कतल करवा देता है कि वे मुसलमान हैं। और फिर हमारी महान न्याय व्यवस्था अपना महान निर्णय देती है कि आस्थाओं पर ध्यान दो। राम सखा असली रूप में आ चुके हैं और वे भी उस ज़मीं के टुकडे के हिस्सेदार हैं जैसे निर्मोही अखाड़ा और शिया वख्फ़ बोर्ड। साथ ही अपनी मुछों के नीचे से मुस्कुराते मोहन भागवत (अपने अजीज़ मित्र से उधार लिए शब्द जो वे बार बार दोहराते और सुनाते हैं) के जोश भरी आवाज़ कि य