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लाल किले पर लाल निशान

पहली बार वामपंथ हिन्दोस्तान में सबकी नज़रों पर चढा हुआ है। कारन चाहे जो भी हो संप्रंग से दोस्ती का मामला हो या नंदीग्राम का मसाला। वामपंथ एक बार फिर दुनिया को अपनी ओर खिंचा है। सब सकतें में हैं क्या होगा कहीं यह कुल्हाडी मारें का मसला न हो जाये। लेकिन हिन्दोस्तानी वामपंथ धीर वीर गंभीर है क्योंकि यह बिल्कुल नया केस भी नही है। ऐसी स्थिति कई बार आई थी और हर बार वामपंथ ने अपने को साबित किया है। इस बार भी यही हिन्दोस्तानी वामपंथ सफल हुआ तो लाल किले पर लाल निशान का सपना दूर न होगा। याद करे ९० के दशक कि भाजपा को। २ सीटों से २०० सीटों का सफर भी इसी तरह विवादास्पद और दिलचस्प था। अब ज़रूरत सिर्फ अपनी पहचान और अपने सही संदेश को उस अन्तिम आदमी तक पहुँचनी है जो वामपंथ का वोटर है और सर्वहारा है.

कैफ़ियते हिन्दुस्तान

हिन्दोस्तान के हाल चाल के बारे कुछ कहने और जानने कि इच्छाएँ हुई तो सोचा कि एक अपना ढाबा खोल लिया जाये और कुछ लोगों से अपनी  बात  कही जाय। कुछ दिनों पहले इप्टा के डायमंड जुबली के जलसे मैं नंदिता दास आई थी।  जलसे मैं एक वक्ता ने कहा कि नंदिता  की खूबसूरती  ऐश्वर्या कि बनावटी चमचमाती  खूबसूरती  के लिए चैलेंज है। ऐसा सुन  नंदिता मुस्कुराई और दर्शकों की भीड़ मैं एक ऐश्वर्या को  ढूँढने  लगी पर वहाँ कोई ऐश्वर्या नही थी बल्कि हज़ारों शबाना , स्मिता और नंदिता दास दिख रहीं थी। सवाल यह नही कि हम क्या देख रहें है या क्या दिखाया जा रह है सवाल यह है हम क्या देखना चाहतें है ! क्या हम यह नही देख रहीं है कि हिन्दोस्तान के इतिहास मैं पहली बार कोई राजनीतिक इच्छा शक्ति जनता के लिए सरकार को घुटनें टेकने को मजबूर कर रही है क्या यह ब्लैक मेलिंग किसी वोट बैंक के लिए है या अपने आदर्शों और  सिद्धान्तों,  सामाजिक लड़ाई । भारत का नागरिक होने के नाते हम संघर्ष करे