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खेलें नाटक - नाटक

आओ आओ नाटक खेलें, खेलें नाटक - नाटक  जीवन की हम राह बताएं, खोलें दिल का फाटक  दूर देश की कथा सुनाएँ, कोलंबस की बात बताएं  कबीरा खड़ा बाज़ार में, तुग़लक के दरबार में  माटी की गाड़ी आयी है, अमली के संसार में  हरिश्चंद्र की सुनो कहानी, अँधा युग की बात पुरानी  आधे अधूरे, माधवी, आषाढ़ का एक दिन  समरथ का मदारी आया, कहने अचानक एक दिन  आओ आओ नाटक खेलें, खेलें नाटक - नाटक  जीवन की हम राह बताएं, खोलें दिल का फाटक 

संस्कृति के सवाल पर ऐसी चुप्पी क्यों?

क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि दुनिया की सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की सरकार जहां एक तरफ प्रगति और विकास के ढेरों आंकड़े प्रस्तुत करती है, वहीं संस्कृति के सवाल पर ऐसी चुप्पी क्यों साध लेती है मानों यह सवाल ही न हो। परन्तु इस संदर्भ में ऐसे अन्तर्विरोध भी देखने को मिलते हैं कि जहां राजसत्ता और राजनीतिक ताकतों को ‘संस्कृतिकर्म’ चुनौती दिखता है (वहां तथाकथित तौर पर देश की ‘एकता-अखण्डता’ खतरे में पड़ जाती है/सत्ता पर हमला हो जाता है/जनभावना खतरे में पड़ जाती है)। जब संस्कृतिकर्म और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के दमन की बात आती है, तो उससे जरा भी पीछे खिसकती नजर नहीं आती है। आज़ादी के समय से लेकर अब तक ऐसे ढेरों उदाहरण हमारे सामने हैं। वैसे सरकार बीच-बीच में ऐसे कार्य भी करती रहती है जिससे अगर प्रतिपक्ष सवाल उठाये तो उसका छद्म जवाब दिया जा सकता है। यदि कोई सवाल करे कि ‘सरकार संस्कृति के विकास और कलाकारों के कल्याण के लिए क्या कर रही है?’ तो जवाब आयेगा कि ‘इसके लिए एक समर्पित विभाग है, जो कला-संस्कृति के दायित्वों का निवर्हन कर रहा है। संस्कृति के विकास के लिए संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी,