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क्या यह कला कर्म के अंत की शुरूआत है?

 https://youtu.be/I6ShaTlyzZQ यह पोस्ट पढ़ने के पहले ऊपर लिखे यूट्यूब वीडियो को ज़रूर देखें। कला कर्म के अनगिनत माध्यम हैं। इंटरनेट की आभासी दुनिया के आने के बाद यह लगा था कि कला कर्म को नए पंख मिलेंगे। देखने, सुनने और साझा करने का दायरा बढ़ेगा, लेकिन सच्चाई कुछ और ही हमारे सामने है। आज तक किसी कला कर्म ने लोगों को बांटा नहीं, बल्कि ऑडिटोरियम, मैदान, कैनवास, साउंड सिस्टम्स के दायरे में लोगों को जोड़ा ही है।  दुनिया का हरेक art form एक साथ बैठने, एक ही विषय पर संग हंसने, रोने और सोचने के लिए जोड़ते हैं। लेकिन यही कला कर्म जब इंटरनेट के माध्यम से हमारे लैपटॉप, मोबाईल फोन में आया तो हम बंट गए। जो अच्छा नहीं लगा उस पर गालियां देने लगें। धमकी तक दे डाली। दूसरे ओर से बचाव के मसीहा बनाने के लिए गाली देने वाले को कोसने लगे। कला कर्म का स्थान लड़ाई और बांटने का अड्डा बन गया। इसमें कला कहां गई पता ही नहीं चल रहा है। मुन्नवर फारूकी के इस वीडियो को देखते हुए ऐसा ही लगा। आप भी चर्चा में शामिल हों। दस साल से अधिक इप्टा के साथ रंगकर्म करने के दौरान कई ऐसे मौके आएं जहां विचार, प्रस्तुतिकरण की असहमति ज