सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अप्रैल, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पूरा करते रहेंगे दुनिया की सांस्कृतिक और मानवीय ज़रूरतों को

'वामपंथ इस दुनिया को हमेशा यह सीख देता है कि अगर हम बिना डरे, उत्साह के साथ अपनी गरिमा और सम्मान के लिए कर्म करते रहे तो दुनिया की सांस्कृतिक और मानवीय जरूरतों को पूरा करते रहेंगे।' 'हमें बिना रुके लगातार लड़ना और संघर्ष करना है।' संघर्ष उन ताक़तों के ख़िलाफ़ जो शोषण और उत्पीड़न की संस्कृति में विश्वास करते हैं। संघर्ष मुक्तिकामी समाज की स्थापना के लिए। जनता की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में वामपंथ सदा से रहा है और आम जन के बीच रहेगा। युवा, बुजुर्ग और बच्चे सदैव ही प्रगतिगामी और मुक्तिकामी समाज के आंदोलन के साथी रहेंगे। क्रांति और समाजवाद के झंडे को बगैर किसी दुख या निराशावाद के अपने युवा आधार स्तंभों के हवाले करेगी।'

बिन पानी क्यों सून???

इस प्यास की पङताल जरूरी है यह सच है कि 1960 के दशक में अमेरिका की औद्योगिक चिमनियों से उठते गंदे धुएं के खिलाफ आई जन-जागृति ही एक दिन ’अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस’ की नींव बनी। यह भी सच है कि धरती को आये बुखार और परिणामस्वरूप बदलते मौसम में हरित गैसों के उत्सर्जन में हुई बेतहाशा बढ़ोत्तरी का बङा योगदान है। इस बढ़ोत्तरी को घटोत्तरी में बदलने के लिए दिसंबर, 2015 के पहले पखवाङे में दुनिया के देश पेरिस में जुटे और एक समझौता हुआ। गौर करने की बात यह है कि पेरिस जलवायु समझौता कार्बन व अन्य हरित गैसों के उत्सर्जन तथा अवशोषण की चिंता तो करता है, किंतु धरती के बढ़ते तापमान, बदलती जलवायु और इसके बढ़ते दुष्प्रभाव में बढ़ती जलनिकासी, घटते वर्षा जल संचयन, मिट्टी की घटती नमी, बढ़ते रेगिस्तान और इन सभी में खेती व सिंचाई के तौर-तरीकों व प्राकृतिक संसाधनों को लेकर व्यावसायिक हुए नजरिये की चिंता व चर्चा... दोनो ही नहीं करता। हमें चर्चा करनी चाहिए कि भारत के 11 राज्यों में सुखाङ को लेकर आज जो कुछ हायतौबा सुनाई दे रही है, क्या उसका एकमेव कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि अथवा परिणामस्वरूप बदली जलवायु ही है अ

रंग-घर की दृष्टि से विपन्न छत्तीसगढ़: राजकमल नायक

छत्तीसगढ़ कला दृष्टि से संपन्न है परंतु रंग-घर की दृष्टि से विपन्न। शर्मनाक, हास्यास्पद, आश्चर्यजनक, अफसोसजनक तथा धिक्कारने योग्य बात है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर मं रंगमंच के लिए सर्वसुविधायुक्त प्रेक्षागृह नहीं है। संभवत: देशभर के राज्यों की राजधानियां प्रेक्षागृहहीन नहीं हैं। हम ही हीन हैं, विहीन हैं, विपन्न हैं, पिछड़े हैं, पंगु हैं, लाचार हैं। बहुत कुछ हैं। रायपुर में चहुं ओर कांक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं, सड़कें बारम्बार बन रही हैं, कलात्मक, सज्जायुक्त दीवारें बनकर और तोड़कर पुन: निर्मित की जा रही हैं, विकास के नाम पर धन उलींचा जा रहा है। नया रायपुर को भव्य बनाया जा रहा है, जहां अभी भी कोई बस नहीं पाया। छत्तीसगढ़ सुंदर हो, नेक विचार है, लेकिन वह सुसंस्कृत हो, कलात्मक, बौद्धिक, वैचारिक, सामाजिक, आर्थिक आदि दृष्टि से समृद्ध हो, यही राज्य की ख्याति और शक्ति होगी। ऊपरी सुंदरता तो मात्र मुलम्मा है जो क्षणिक सुखकर है। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रख्यात नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर, विख्यात लेखक मुक्तिबोध, विनोद कुमार शुक्ल, श्रीकांत वर्मा, शंकर शेष, लोक कला की शीर्षस्थ कलाकार तीजनब

बिहार में शराबबंदी के बहाने

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव के पहले महिलाओं से किया वादा निभाया। पहली अप्रैल से बिहार में शराबबंदी लागू कर दी। अब बिहार में देशी हो या विदेशी, मसालेदार या वोदका सब बंद। बार पर तालें लटके हैं और लाखों के चेहरे भी। आँखें ढूँढती फिर रही है, अंगूर के रास को। काफी साहस के साथ लिया गया निर्णय, परंतु के संशय- "कितने समय के लिए होगा यह सब?", कहीं पंचायत चुनाव में शौचालय की अनिवार्यता की तरह यह भी वापस ना हो जाए? लेकिन छूटते ही दूसरी आवाज़ "नीतीश का निश्चय, विकास की गारंटी"। इसलिए पूरा भरोसा, शराब बंदी जारी रहेगी। "पर विकास का पैसा कहाँ से आएगा?", "हर घर में नल का जल, शौचालय, क्रेडिट कार्ड, नाली गली, ....., कैसे पूरे होंगे।" "जब शराब ही नहीं तो यहाँ पैसा कौन लगाएगा?", "पूरी हिटलरशाही है, एक सरकार तय कर रही है कि क्या खाएं (मांस, या अन्य???) और दूसरी बिहार वाली पीना तय कर रही है।" सैकड़ों सवाल घर बाहर, सड़क गलियों, नुक्कड़ ऑफिस गूँज रहे हैं और पटना का 7 सर्कुलर रोड/1 अन्ने मार्ग धीर-वीर-गंभीर की तरह अपने एजेंडा में