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गाँधी: एक पुनर्मूल्‍यांकन

✍🏽 कात्‍यायनी 🖥 http://ahwanmag.com/archives/6235 _____________________ ‘जनसत्‍ता’ के सम्‍पादकीय पृष्‍ठ पर काफी पहले सुधांशु रंजन ने ‘महात्‍मा गाँधी बनाम चर्चिल’लेख में गाँधी के ब्रह्मचर्य प्रयोगों का प्रसंग उठाया था। लेखक के अनुसार, आम लोगों की दृष्टि में विवादास्‍पदता के बावजूद, ‘ गाँधी का यह प्रयोग नायाब था, जिसे सामान्‍य मस्तिष्‍क नहीं समझ सकता’  और सत्‍य का ऐसा टुकड़ा उनके पास था जिसने उन्‍हें इस ऊँचाई पर पहुँचा दिया।’ बेशक इतिहास का कोई भी जिम्‍मेदार अध्‍येता गाँधी के ब्रह्मचर्य-प्रयोगों पर उस तरह की सनसनीखेज, चटखारेदार चर्चाओं में कोई दिलचस्‍पी नहीं लेगा, जैसी वेद मेहता से लेकर दयाशंकर शुक्‍ल ‘सागर’ आ‍‍दि लेखक अपनी पुस्‍तकों में करते रहे हैं। लेकिन किसी इतिहास-पुरुष के दृष्टिकोण में किसी भी प्रश्‍न पर य‍दि कोई अवैज्ञानिकता या कूपमण्‍डूकता होगी, तो इतिहास और समाज के गम्‍भीर अध्‍येता निश्‍चय ही उसकी आलोचना करेंगे। यहाँ प्रश्‍न यह है ही नहीं कि गाँधी के ब्रह्मचर्य-प्रयोगों के पीछे ब्रह्मचर्य की शक्ति और न केवल व्‍यक्ति बल्कि पूरे समाज पर पड़ने वाले उसके सकारात्‍मक प्रभाव पर गाँधी

भारत विभाजन की अंतःकथा

#भारत_विभाजन_की_अन्तःकथा_जिससे_मोदीजी_अवगत_नहीं_हैं। #प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के सयुंक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर दिये गये अपने भाषण में नागरिकता संशोधन बिल (CAA) के संदर्भ में पूर्व प्रधानमंत्री द्वय पं.जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री तथा समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया के बयानों को कोड किया था। उसी भाषण में उन्होंने प.नेहरू का नाम लिये बिना उन पर तंज कसते हुए यह कहा था कि 'किसी को प्रधानमंत्री बनना था, इसलिये एक लकीर खींच दी गयी और देश का विभाजन कर दिया गया।' प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी से यह सोच कर कि उनकी इतिहास की समझ कितनी सतही है, सभी जानकारों को घोर आश्चर्य हुआ होगा। उन्होंने यह बात यदि किसी चुनावी सभा में कही होती तो उसे नजरअंदाज भी किया जा सकता था। लेकिन उन्होंने यह बात संसद में कही है, इसलिये इसकी समालोचना की जाना जरूरी है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में डॉ. लोहिया को भी कोड किया था। उन्होंने यदि डॉ. लोहिया की ही भारत विभाजन की त्रासदी पर लिखी गयी विश्लेषणात्मक किताब 'Guiltymen of India's Partition' जि

जश्ने फ़ैज़: लाज़िम है कि हम भी देखेंगे

मेरा पहला ख़्वाब एक क्रिकेट खिलाडी बनना था, दूसरा नक़्क़ाद या रिसर्च स्कॉलर, तीसरे-चौथे का यक़ीन से नहीं कह सकता। अमृतसर में गुज़रा लेक्चरर-शिप का वक़्त मेरे सब से ख़ुशगवार और यादगार दिनों में से है। मैंने दाग़, मीर और ग़ालिब को भी पढ़ा और में ये तस्लीम करना चाहता हूँ के ग़ालिब मेरी समझ से परे ही रहे, इसका ये मतलब नहीं के दाग़ और मीर को मैं पूरी तरह समझ पाया, लेकिन इन शायरों ने मेरे ज़हन पर अमिट छाप छोड़ी।” एक ऐसा हासिल-ऐ-कलाम शख़्स जिस की ज़िन्दगी का सफ़र एक लंबी सियाह रात के बाद दूसरी भयानक बे-पयाँ काली रात में जा ठहरा। एक ऐसी ज़िंदा-दिल, लर्ज़ा-अंगेज़ आवाज़ जो हर कसो नाकस (हर एक) के कानों में आज़ान की तरह गूंजती तो रही लेकिन नमाज़ को हासिल न हुई। एक ऐसा ज़हन, जिसकी फ़िक्र और दूरअंदेशी का हर दौर काईल रहा, जिसकी ऐलानिया दबंगई न ज़िंदाँ में दफ़्न हुई न बाहर ख़ास-ओ-आम के दरम्यान। हम देखेंगे लाज़िम है कि हम भी देखेंगे वो दिन कि जिसका वादा है जो लोह-ए-अज़ल में लिखा है (लोह-ए-अज़ल — सनातन पन्ना) जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां (कोह-ए-गरां — घने पहाड़) रुई की तरह उड़ जाएँगे हम महक़ूमों के पाँव तले (महक़ूम

IPTA is the cultural mirror of India

Suchetana Banerjee in conversation with Samik Bandyopadhyay on the politics of Indian People's Theatre Association, New Delhi, 2017 Suchetana Banerjee (Sahapedia) : Samik Da, thank you for agreeing to talk to us about IPTA. I would start by asking, why was Indian People’s Theatre Association formed? Samik Bandyopadhyay :  It is a very interesting critical point, juncture at which the IPTA emerged along with the Progressive Writer’s Association. The two organisations came almost at the same time and under the same pressures. It was in 1940s, the Second World War was already on and there had been a major political shift in 1942-43 with Germany attacking the Soviet Union. And internationally the communist movement spread all over the world and taking a very leading role in the anti-colonial struggles in different parts of the world in the different continents. There was a shift of focus, a kind of consensus circulated that for the time being fascism is the greater danger and