पहली बार वामपंथ हिन्दोस्तान में सबकी नज़रों पर चढा हुआ है। कारन चाहे जो भी हो संप्रंग से दोस्ती का मामला हो या नंदीग्राम का मसाला। वामपंथ एक बार फिर दुनिया को अपनी ओर खिंचा है। सब सकतें में हैं क्या होगा कहीं यह कुल्हाडी मारें का मसला न हो जाये। लेकिन हिन्दोस्तानी वामपंथ धीर वीर गंभीर है क्योंकि यह बिल्कुल नया केस भी नही है। ऐसी स्थिति कई बार आई थी और हर बार वामपंथ ने अपने को साबित किया है। इस बार भी यही हिन्दोस्तानी वामपंथ सफल हुआ तो लाल किले पर लाल निशान का सपना दूर न होगा। याद करे ९० के दशक कि भाजपा को। २ सीटों से २०० सीटों का सफर भी इसी तरह विवादास्पद और दिलचस्प था। अब ज़रूरत सिर्फ अपनी पहचान और अपने सही संदेश को उस अन्तिम आदमी तक पहुँचनी है जो वामपंथ का वोटर है और सर्वहारा है.
रंगकर्मी, रंग निर्देशक रेखा जैन का भारतीय जन नाट्य संघ यानी इप्टा में ऐतिहासिक अवदान है। वे इसकी संस्थापक सदस्य थीं। संगठन के आग़ाज़ से ही वे इससे जुड़ गई थीं। उनकी ज़िंदगी के हमसफ़र कवि, आलोचक नेमिचंद्र जैन और वे जब एक बार इस रहगुज़र पर चले, तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। लेकिन इससे पहले रेखा जैन को अपने परिवार से कड़ा विरोध झेलना पड़ा। तमाम भारतीय परिवारों की तरह उनका परिवार भी घोर रूढ़िवादी था। 28 सितम्बर, 1923 को आगरा में जन्मी रेखा जैन, जब नौ साल की थीं, तभी उनका स्कूल जाना बंद करा दिया गया। साढ़े बारह साल की उम्र में उनकी नेमिचंद्र जैन से शादी हो गई। ससुराल में भी उन्हें दक़ियानूसी माहौल मिला। घर में पर्दा प्रथा थी, तो महिलाओं का बाहर निकलना अच्छा नहीं समझा जाता था। नेमिचंद्र जैन वाम राजनीति और सांस्कृतिक आंदोलन में सरगर्म थे। ज़ाहिर है कि रेखा जैन पर इसका असर पड़ा और वे भी उनके साथ सियासी तौर पर सक्रिय हो गईं। एक कॉटन मिल में नौकरी के चलते नेमिचन्द्र जैन कुछ दिन कलकत्ता रहे। कलकत्ता उस वक़्त वाम राजनीति का केन्द्र बना हुआ था। बिनय रॉय, बिजन भट्टाचार्य, ज्योतिन्द्र मित्र, शम्भू मित्
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lolikneri havaqatsu