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लाल किले पर लाल निशान

पहली बार वामपंथ हिन्दोस्तान में सबकी नज़रों पर चढा हुआ है। कारन चाहे जो भी हो संप्रंग से दोस्ती का मामला हो या नंदीग्राम का मसाला। वामपंथ एक बार फिर दुनिया को अपनी ओर खिंचा है। सब सकतें में हैं क्या होगा कहीं यह कुल्हाडी मारें का मसला न हो जाये। लेकिन हिन्दोस्तानी वामपंथ धीर वीर गंभीर है क्योंकि यह बिल्कुल नया केस भी नही है। ऐसी स्थिति कई बार आई थी और हर बार वामपंथ ने अपने को साबित किया है। इस बार भी यही हिन्दोस्तानी वामपंथ सफल हुआ तो लाल किले पर लाल निशान का सपना दूर न होगा। याद करे ९० के दशक कि भाजपा को। २ सीटों से २०० सीटों का सफर भी इसी तरह विवादास्पद और दिलचस्प था। अब ज़रूरत सिर्फ अपनी पहचान और अपने सही संदेश को उस अन्तिम आदमी तक पहुँचनी है जो वामपंथ का वोटर है और सर्वहारा है.

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
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